आयुर्वेद के माध्यम से सदैव सुरक्षित जीवन के लिये एक योजना ‘वेद ज्ञान है सच्चा विकास‘ आइये वायरस से बचाव अभियान में एक कदम और आगे बढाते हैं सुुुुुुुुुुुुुुरक्षित और शान्त जीवन आने वाली पीढी को देने का प्रयास।
पर्यावरण रक्षा के लिये आवश्यक है अपनी जीवन शैली को वेदो आधारित करना
सत्यम् लाइव 14 मार्च 2020, संक्रमण नामक शब्द भारतीय शास्त्रों में कई जगह पर वर्णन किया गया हैै आप सब मीडिया के माध्यम सेे देख रहे हैं कि आज पूरा नाॅॅॅॅवल कोरोना वायरस के डर हाथ मिलाने की परम्परा को छोडकर हाथ जोडकर नमस्ते रहें हैं। विश्व स्वास्थ संगठन ने इस वायरस को महामारी घाेेषित कर दिया है इससेे पहले स्वानफलू को महामारी घोषित किया गया था। महामारी नामक शब्द भारतीय शास्त्रों में है तथा संक्रमण के बारे में एक लम्बा परिचय मिलता है। सर्वप्रथम तो यही जानना आवश्यक है कि संक्रमण में दो तरह के कीट होते हैं एक जीवाणु, दूसरा कीटाणु। जो जीव को पोषित करे वो जीवाणु है तथा जो जीव को नुकसान पहुॅचाये वो कीटाणु है।

भारतीय शास्त्रों में जीवाणु के पोषकता की बात भरी पडी हैंं भारतीय ऋषियों मुनियों ने भारतीय परम्परा को कुछ ऐसा बनाया जिससे कि भारतीय समाज में कभी भी कोई बीमार ही न रहे। जी हॉ ये सत्य है कि एक मात्र आयुर्वेद ही कहता है कि आप बीमार ही मत पडो। भारतीय शास्त्र ये भी कहते हैं कि कलयुग मेें संक्रमण के कारण प्रकृति को ज्यादा नुकसान मनुष्य पहुॅचाता है साथ ही चारों तरफ हाहाकार मचा रहता है। कीटाणु संक्रमण के कलयुग में जन्म लेना का मुख्य कारण है हम सब अपनी संस्कृति और सभ्यता को भुल बैठे है।
भारतीय शास्त्रों के अनुसार जीवाणु और कीटाणु दोनों ही हमारे चारों ओर उपस्थित रहते हैंं सूर्य और चन्द्रमा अपनी गति से बहुत से कीटाणु को समाप्त करता रहता है और हमारे शरीर में जीवाणु की संख्या बढा देता है फिर अगर कोई कीटाणु इन दोनों की मार से बच जाता है तो मानव जीवन में ”यथा ब्रम्हाण्डे तथा पिण्डे” के अनुसार हमारे अन्दर की शक्ति जो हमने सात्विक भोजन तथा शुद्व जल अर्थात् गर्म जल से उत्पन्न हुई है वो मार देते हैं परन्तु जो व्यक्ति पहले से ही संक्रमित है अर्थात् कीटाणु मारने के लिये उसके शरीर के जीवाणु सतर्क नहीं है वो अवश्य ही संक्रमित हो जाता है ये वही व्यक्ति होता है जो मॉसाहार, फास्ट फूड तथा कूडा पेय पदार्थ को पीकर अपने आपको शक्तिमान समझने की भूल कर बैठता है।
संक्रमित मानव के सम्पर्क मेें रक्त, लार, श्वेद (पसीना) के माध्यम से जो भी आता हैै उसे ये संक्रमण अपनी पकड में लेने का प्रयास करता है परन्तु अभी वो वायरस की चपेेेट में नहीं आता है बल्कि उसकी अन्दरूनी शक्ति उस कीटाणु का नाश करने का कार्य प्रारम्भ कर देती है यदि अन्दरूनी शक्ति कमजोर है तो अवश्य ही कीटाणु अर्थात् वायरस आपको संक्रमित करने लगता है।
कुछ संक्रमण ऋतु के अनुसार होते हैं उन संक्रमण को सूर्य, चन्द्रमा तथा नक्षत्रों के योग से स्वयं समाप्त कर देते हैं। संक्रमण से पर्यावरण की रक्षा केे लिये कुुुछ पशु-पक्षी को जन्म दिया। ये पशु-पक्षी पर्यावरण की रक्षा करते हुुए अपने जीवनकाल को इन कीटाणुओं का भक्षण करते हुए काटते हैं इन पशु-पक्षी को मनुष्य ने अपना आहार बनाकर कीटाणु को बढने का समय दे दिया है। भगवान कृष्ण ने गीता में इंसान अपने मोहजाल को नहीं छोड पाता है इसलिये परेशान रहता है ये यहीं से सिद्व होता है। ऐशो आराम के लिये संक्रमित को जन्म दे देता है।

ऋतु के अनुसार वायरस कई तरह से हमें संक्रमित करते हैंं –
1- भोजन और पेय पदार्थ के अनुसार
2- वायु केे माध्यम
ऋतु के अनुसार भोजन तथा पेय पदार्थ अर्थात् जल (गर्म पानी) को सदैव स्वच्छ पियें – आयुर्वेद के अनुसार शुद्व जल- बरसात का, कुंए का फिर किसी भी गोल पात्र का पानी पीने लायक होता हैै। गलत भोजन तथा गन्देे जल के माध्यम से आन्त्रिक शोध, आन्त्रशोध या अतिसार (दस्त आना) प्रारम्भ होता है।
वायु के माध्यम संक्रमण दो प्रकार से प्रवेश करते हैं – 1- प्रत्यक्ष रूप से 2- अप्रत्यक्ष रूप से
प्रत्यक्ष रूप से साथ में शयन करना, अंग स्पर्श तथा साथ में भोजन करने पर होता है परन्तु ये तभी होता है जब संक्रमण महामारी के रूप में फैल चुकी हों।
अप्रत्यक्ष रूप से मक्खी, मच्छर, खटमल और साझात् सम्बन्ध में जैसे कुत्ता के काटने से भी संक्रमण उत्पन्न होता है।
वायु केे माध्यम से श्लेष्मक नामक संक्रमण उत्पन्न होता है यही है जो कोरोना केे कारण बताया जा रहा है। यही से प्रारम्भ होता है ये वायरस इसके साथ ही पहले तो यह समझना होगा कि कोरोना क्या है इसके लिये ”सौर कोरोना एक परिचय” नामक शीषक पहले लिखूगॉ। फिर इससे बचाव केे आयुर्वेद में दिये तरीके पर कहूॅगा। ………………………….. क्रमश:
उपसम्पादक सुनील शुक्ल