सत्यम् लाइव, 6 जुलाई 2021, दिल्ली।। 23 जनवरी 1897 को ब्रिटिश सामाज्य के अन्त के इतिहास का एक पृष्ठ जोड़ने वाले महामानव सुभाष चन्द्र बोस जी का जन्म हुआ था। माता प्रभावती तथा पिता जानकी नाथ बोस जी जो दशरथ बोस जी की 11वीं पीढ़ी में जन्में थे। 11पीढ़ी पहले श्री महीपत बोस जी बंगाल के नबाव के वित्त एवं युद्ध विभाग में मंत्री पद पर आसीन थे। महीपत बोस को खिताब के रूप में ‘‘सुबुद्धिखान’’ के नाम से दिया गया, एक गॉव आज भी विख्यात है। इसी वंश के ‘‘गोपीनाथ बोस जी’’ जो 15वीं शताब्दी में, सुल्तान हैदरशाह की सभा में, वित्तमंत्री एवं जल सेनापति थे। गलत को गलत कहने की परम्परा वंशागत सुभाष चन्द्र बोस जी को प्राप्त थी। मात्र 10 वर्ष की आयु में पहली बार रेवेनशा कॉलेजियेट स्कूल में अपने शिक्षक श्रीवास्तव जी को, सुभाष ने इग्लैण्ड की महारानी की लम्बी उम्र की आयु के लिये प्रार्थना करने को मना कर दिया था। इसके कारण शिक्षक द्वारा दण्डित भी किये गये परन्तु इग्लैण्ड की महारानी के लिये प्रार्थना नहीं की, साथ ही विरोध के शब्दों के साथ कहा कि क्या इग्लैण्ड की महारानी कोई धर्म गुरू या पैगम्बर है जो उनकी लम्बी आयु के लिये प्रार्थना करूं।
23 जनवरी 1944 पूर्व-एशिया के लोगों ने सुभाष चन्द्र बोस को सोने से तौल दिया। इसी समय सुभाष चन्द्र बोस ने कहा कि ये तो ठीक है कि आपने ने आजादी के लिये अपने दरबाजे खोल दिये परन्तु युद्ध के लिये बलिदान की भी आवश्यकता होती हैं अतः ‘‘आप मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूॅगा।’’ रंगून के रेडियो से 6 जुलाई 1944 का दिन था जब सुभाष चन्द्र बोस ने भाषण देते हुए बापू से आशीष मॉगते हुए कहा कि ‘‘….. हे राष्ट्रपिता! भारत स्वाधीनता के इस पावन युद्ध में आपका आशीर्वाद और शुभकामनाएँ चाहते हैं।’’ 18 मार्च 1945 को सुभाष चन्द्र बोस हवा में ही विलीन हो गये। इस प्रकार एक महामानव की जीवन लीला ने कहीं भी किसी से मतभेद नहीं किया परन्तु इनके बाद कुर्सी के प्रेमी ने जो भारतीय शास्त्रों से अपरिग्रह को समझना ही नहीं चाहते थे या फिर सत्ता के प्रेमी ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महामानवों को आपस में सदैव झगड़ा ही बताया जबकि किसी में आपस में कोई झगड़ा नहीं था। झगड़ा को आग देने का काम सत्ता के लोभियों ने इतिहास में आज तक सुनाते चले जा रहे हैं।
सुनील शुक्ल
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