आ अब लौट चलें …..

दिनकर जी ने अपनी कविताओं में सिर्फ सत्‍ता को ही दोषी नहीं ठहराया है बल्कि जनता के लिये भी कहा है ”समरशेष है नहीं पाप भागी सिर्फ व्याध, जो तथस्थ है समय लिखेगा स्वयं उसका इतिहास”

सत्‍यम् लाइव, 26 मार्च 2020, दिल्‍ली। पिछले दो दिन पहले अचानक लगा 21 दिन के लॉक डाउन में जो फंसा है वो निश्चित तौर पर कहा जा सकता हैै कि वो गरीब ही है जो रोजमर्रा का जीवन जी रहा था। इसी संदर्भ को लेकर जब कुछ याद करो तो रामधारी सिंह दिनकर जी की याद आती है जिनकी कलम में दिल्‍ली पर भी आग उगली है हलाकि रामधारी सिंह दिनकर जी की एक कविता में कहते हैं कि मेरे अन्‍दर की ज्‍वाला को गॉधी ने जगाई है। पर दिनकर जी की सब कविताएं स्‍वयं मेें ज्‍वाला के समान हुआ करती थीं। दिल्‍ली पर जो कविता लिखी है वो आज भी सत्‍य वयां करती है

महाकवि रामधारी सिंह दिनकर

जो सच लिखना था हमारे पूर्वज लिखकर चले गये अब हम सब तो सिर्फ उनका अनुसरण करके कुछ कॉपी करके लिख देते है। दो दिन पहले प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी रात्रि 8 बजे टीवी पर आकर रात्रि 12 बजे से सम्‍पूर्ण भारत को लॉक डाउन कर दिया उसमें। उसमें रेल, बस, ऑटो रिक्‍शा, टैक्‍सी या प्राइवेट वाहन सहित नीजि वाहन को भी कोरोना वायरस रोकने के लिये बन्‍द करने का ऐलान कर दिया। सारे बार्डर सील कर दिये। अब बारी थी इन्‍हीं रोजमर्रा के जीवन यापन करने वालों की। दिनभर की मेहनत के बाद कहीं भोजन बनाकर रोड के किनारे जीवन यापन कर रहे थे उनका न कोई घर था न कोई ठिकाना। सडक पर रूक नहीं सकते थे पुलिस उन्‍हें मारती और रेल या बस सेवा है नहीं जाऐं कहॉ ? अपने पैरों पर ही भरोसा था अब चल पडे किसी को 200 किलोमीटर का रास्‍ता तय करना था तो किसी को 1500 किलोमीटर। रास्‍ता कठिन तो कम था पर छोटे बच्‍चें साथ में थे कैसे काटा रहे है वो सफर। बडा तो अपनी भूख को कुछ रूक भी सकता है परन्‍तु तब अवश्‍य ही ‘दिनकर जी’ की वो कविता याद आ जाती है जब एक छोटा बच्‍चा रो-रोकर कहता है ”दो दिन से कुछ खाया नहीं है कुछ खाने को दे दो। पापा खाना लेने गये थे तो पुलिस ने उनको मारा है, एक ऑटी खाना देने आयीं थी पुलिस ने उनको भी मारकर भगा दिया है।” ये सुनने के बाद इस सिस्‍टम को क्‍या नाम दिया जाये समझ में नहीं आता है? ये देश भगवान राम का है जहॉ पर आज भी रामराज्‍य का नाम लेते व्‍यक्ति थकता नहीं है और श्रीराम के परमभक्‍त ही ऐसा निर्णय बिना सोचे समझे ले लें तो क्‍या कहा जाये? इटावा के पास दिल्‍ली से गये एक मॉ की स्थिति देखकर याद आया कि ”भूखा बचपन सिसक रहा है ममता की मजबूरी है, बढी आनाज से फिर आज उसके मालिक की दूरी”। इस वाक्‍य में सच का आइना दिखा।

दिनकर जी ने अपनी कविताओं में सिर्फ सत्‍ता को ही दोषी नहीं ठहराया है बल्कि जनता के लिये भी कहा है ”समरशेष है नहीं पाप भागी सिर्फ व्याध, जो तथस्थ है समय लिखेगा स्वयं उसका इतिहास” । रहने को जगह नहींं थी तो इन छोटे बच्‍चों के साथ चलना तो पडेगा ही परन्‍तुु अभी यहीं लीला समाप्‍त नहीं होती है जब लॉक डाउन कानून के नियम तोडने पर पुलिस इनका स्‍वागत करती है और पुलिस ने कुछ लोगों का तो ऐसा स्‍वागत किया कि सच मेें एक बार सोचने पर मजबूर होना पडा कि सच में इनके पेट ने इतना बडा गुनाह किया था। एक पिता अपने घर के लिये सब्‍जी लेने घर से निकला तो पीटा और तो और घर से बाहर खडे होने पर पीटा। डाक्‍टर अस्‍पताल जाता हुआ पीटा इसके लिये उत्‍तर प्रदेश की राजधानी में लखनऊ में डाक्‍टर की हडताल पर जाने की तैयार हैं। उससे बढकर ये हुआ कि जो वीडियो सामने आयी है उससे पुलिस वाले उस पुरूष या स्‍त्री से पूछते भी नहीं थे कि आप करते क्‍या हो? बस एक सूत्री कार्यक्रम चालू।

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आप जरा स्‍वयं बिचार करो जब एक व्‍यक्ति 300 किलोमीटर चल चुका हो और उस पर स्थिति में प्रशासन उसकी ऐसी मदद करे तो फिर शक की सूई तो घूमती ही है। अच्‍छा मान भी लें कि उसको वायरस ने पकड सकता है तो उस गरीब को डॉक्‍टर की आवश्‍यकता है या फिर सजा की। इतना तो स्‍वयं सत्‍ता आसीन को सोचना चाहिए कि पुलिस जनता की मदद के लिये सडक पर थी या फिर उनको और परेशानी में डालने के लिये। हम सब स्‍वयं जनता की मदद के लिये अपने आपको संकट डालकर पहुॅचे थे या फिर इस तरह के समाचार को लिखने के लिये। किसी गरीब की मदद करके पुण्‍य कमाने पहुॅचे हम सब पाप के भागीदार बनकर लौटे हैं।

इनमें से कुछ कहना था कि गॉव में भी काम नहीं है वहॉ क्‍या करेगें जाकर। फिर भी गरीब व्‍यक्ति अपनी किस्‍मत को दोष देता। भूखा-प्‍यासा साथ में पिटता हुआ चला जा रहा है अपने घर की ओर। गलती किसकी है तो निश्‍पक्षता के साथ देखा जाये तो कहा जाता है कि भारतीय संस्‍कृति और सभ्‍यता से दूर। गलती सत्‍तासीन तथा अधिकारी समूह की है आपको एक बार ये तो सोच लेना ही चाहिए था कि कौन-किस स्थिति में होगा ये कदम अभी तक यूरोप के कई देशो सहित अरब के कई देशो ने नहीं उठाया है उनका कहना है कि हमारा जीडीपी गिर जायेगा।

उपसम्‍पादक सुनील शुक्‍ल

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