सत्यम् लाइव, 19 जून 2021, दिल्ली।। “बाबा केवल” बिहार में जातिवाद के तमाम आरोप हैं और उन आरोपों का एक वास्तविक आधार है लेकिन इसी जातीय श्रेष्ठता के उहापोह के बीच एक ऐसा भी उदाहरण है जो यह बताता है कि जातीय श्रेष्ठता के अलावा कुछ अच्छे मूल्यों और उन्हें धारण करने वाले का भी सम्मान होता है। बात कर रहे हैं हम बाबा केवल की। बाबा केवल मल्लाहों के पूर्वज थे और उन्होंने लोगों की जान बचाने के लिए बाघ से कुश्ती कर ली थी और अंततः बाघ को हराया भी। उनके इसी साहस, पराक्रम के कारण उनकी पूजा की जाती है
जिस स्थान पर उन्होंने युद्ध लड़ा था उसी स्थान पर आज ‘बाबा केवल धाम’ अवस्थित है। यह नून और कमला नदी का संगम स्थल भी है। बाबा केवल धाम बिहार के समस्तीपुर जिले के मोरवा प्रखंड में है वैसे तो श्रद्धालुओं की भीड यहां प्रतिदिन होती है लेकिन रामनवमी के दिन यहां भव्य मेले का आयोजन होता है जो जन भागीदारी के दृष्टि से बहुत विशाल होता है। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान वरिष्ठ पत्रकार रविश कुमार भी इस मेले की रिपोर्टिंग करने आये थे और प्राइम टाइम में बीस मिनट तक इस मेले का प्रसारण हुआ था।
बाबा केवल धाम में श्रद्धालुओं की कोई कमी नही होती लेकिन सुदूर क्षेत्र में बसे होने के कारण, बाढ़ प्रभावित होने के कारण और सामाजिक आर्थिक रूप से पिछड़े क्षेत्र होने के कारण यहां स्थायी अवसंरचना का अभाव है। मंदिर के अलावा यहां कुछ भी नही है। इस कारण पर्यटन और रोजगार के दृष्टि से इसकी क्षमता का दोहन नही हो पा रहा है। कुल मिलाकर कहा जाये तो जातिवाद की इतनी जटिलता के बाद भी बाबा केवल के रूप में ऐसे मिशाल है जो यह संदेश देते हैं कि समाज में वही पूजनीय होते हैं जो समाज के लिए त्याग और बलिदान करते है।
अंकित पराशर
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