सत्यम् लाइव 9 अप्रैल, 2021, दिल्ली।। महर्षि राजीव दीक्षित जी के स्वदेशी जाग्रति अभियान जिसे आजादी बचाओ आन्दोलन के तहत पर प्रारम्भ किया गया उसने मुझे एक राह तो दिखाई और वो राह 1832 से पहले चलने वाली शिक्षा व्यवस्था पर खोज थी। यदि 1832 से पहले की शिक्षा व्यवस्था को जानना है तो अपने स्वार्थ और वर्ण व्यवस्था पर चल रहे मतभेद को त्याग कर आपको भारतीय चिन्तकों मेें स्वामी दयानन्द सरस्वती जी को समझना ही पडेगा और वो भी लोगों के कहने के अनुसार नहीं बल्कि उनके लिखे ग्रन्थों को उनके अनुसार ही समझना होगा क्योंकि साफ शब्दों में कहूॅ तो आज पढकर और समझकर ज्ञान लेने वाले किनारे बिठाये जाते हैं और कमाने वाले आगेे आगे दौडकर अपरिग्रह को बिना अपनाये भारतीयता बताते हुए घूमते हैं।
स्वामी दयानन्द सरस्वती जी ने जो मैकाले को कोर्स में शमिल करने को कहा था उसमें महान गणितज्ञ आर्यभट्ट जी का ग्रन्थ सूर्य सिद्वान्त भी था। उस धर्म ग्रन्थ को जानने और समझने का अवसर मिला तो धर्म की व्याख्या भी महर्षि आर्यभट्ट ने बताई है जिसमें चारों युगों की कुल 43,20,000 सौर वर्ष को धर्म के 10 लक्षणों से गुणा करके हर युग में धर्म के चार चरणों से गुणा करना होगा। इससे चारों युगों में कितने वर्ष होगें ये निकाला आज भी जाता है। और मैकाले शिक्षा व्यवस्था ने धर्म, जाति, वर्ण, समुदाय सबको एक सूत्र में पिरो दिया है हमारा विज्ञान ही वैदिक गणित से प्रारम्भ होता है।
सूर्य संक्रान्ति ही संक्रमण अर्थात् वायरस को जन्म देता है और स्वत: ही समाप्त करता रहता है। इसी कारण से सूर्य को देव, पिता, पालनहार, रक्षक की संज्ञा दी गयी है। दूसरी तरफ कोरोना कई वायरस (विषाणु) प्रकारों का एक समूह है जो स्तनधारियों और पक्षियों में रोग के कारक होते हैं। मानवों में यह श्वाॅॅस तंत्र के माध्यम से संक्रमण पैदा करता है।
अब चैत्र मास पर एक नजर, सूर्य की स्थिति को समझे तो मेष राशि में सूर्य प्रवेश करेगा 14 अप्रैल को अर्थात् 0 डिग्री पर पहुॅचेगा और धरती के करीब होगा। मेष संक्रान्ति का स्वामी ग्रह मंगल है जो स्वयं में अग्नि तत्व है और सूर्य भी अग्नि तत्व है। अब इस बुद्विजीवि वर्ग को प्रश्न उठना आवश्यक है क्योंकि हर बार प्रताडित होने वाला गरीबों को सत्य बताया ही नहीं जाता और सजा उसे ही मिलती है।
कोरोना वायरस कफ के माध्यम से प्रवेश कर रहा है तो मेष राशि पर सूर्य आयुर्वेद में पित्तकारक कहे गये हैं और हेमन्त ऋतु का संचित कफ बसन्त ऋतु में असर दिखायेगा ही। जो अधिकांशतया खतरनाक नहीं होते हैंं जो शायद ही जानलेवा होता है कोई भी वायरस प्रकृतिक रक्षण न होने के कारण ही पनपता है। आज का वैज्ञानिक जब भी विश्लेषण करता हैै तो वो सदैव अपनी कमियों को छुपा जाता है। कभी जानवरों, तो कभी गरीब व्यक्ति को दोषी वायरस के लिये दोषी ठहराता है।
आयुर्वेद कहता है कि शरीर की दिनचर्या यदि वैदिक गणित के अनुसार आपकी है तो हमारे भारत में सूर्य अपने ताप से किसी भी बडे से बडे वायरस को 27 दिनों में समाप्त कर देता हैै। ये बात भारत के भूतपूर्व वैज्ञानिक तथा प्रखर प्रवक्ता राजीव दीक्षित जी के मुख से आपने सुनी होगी।
वैदिक गणित के अनुसार किये गये संस्कार (ग्रहों की गणना) से प्राप्त सही दिनचर्या एवं ऋतुचर्या को गीता में योग कहा गया है साथ ही इसी संस्कार (ग्रहों की गणना) से अहिन्सा का जन्म होता है। इसके पश्चात् भी यदि ये वायरस आपको परेशन करता है तो आयुर्वेद में तो वातावरण को शुद्व करके अर्थात् हवन करने से भी किसी वायरस को समाप्त किया जा सकता है। होम्योपैथी में आर्सेनिकम एल्बम 30 (Arsenicum Album) आती हैै वो खाली पेट तीन दिन तक सुबह सुबह लेेेेनी है और वायरस समाप्त।
इसी तरह से आयुर्वेद मेें पिप्पली, मारीच तथा शुंठी का पाउडर 5 ग्राम बना लें और तुलसी 3-5 पत्तों 1 लीटर पानी मेें डालकर उबाल लें जब पानी आधा रह जाये तब इसे एक बोतल में रख लें। हर एक घंटे में एक एक घूंट पीते रहें। अगस्त्य हरीत की 5 ग्राम, दिन में दो बार गर्म पानी के साथ ले सकते हैं। प्रतिदिन देशी गाय का बना पंचगव्य नाक में डालते रहें। गौ माता, तुलसी माता और नीम जैसी औषधि भी भगवान भास्कर की कृपा से उपलब्ध है।
सुनील शुक्ल