सत्यम् लाइव, 12 अप्रैल, 2021, दिल्ली।। स्कूल अभी खुले भी नहीं है और ये भी नहीं ज्ञात है कि कब तक खुलेगें परन्तु प्राइवेट स्कूल से बच्चे का नाम कटवा कर अब हर अभिभावक सरकारी स्कूल में नाम लिखवाने के लिये प्रयासरत है। जब अभिभावक से बात की तो पता चला कि प्राइवेट स्कूल में पूरे साल फीस देनी ही पडेगी जबकि सरकारी स्कूल फीस नहीं लगेगी। येे प्रवेश जुनियर कक्षा में करायेे जा रहे है और वो परिवार हैं जो मजदूर वर्ग है।

पूर्वी दिल्ली के कुछ स्कूलों में जाकर जब पता किया तो पता चला कि अब अभिभावक ये नहीं सोच रहा है कि पढाई अच्छी नहीं होगी, बल्कि सुशीला गार्डन के स्कूल में अभिभावक ये कहता नजर आयेे कि कमाई है नहीं फिर अच्छी पढाई हो या खराब हो पढाना तो पडेगा ही। कहना साफ था कि पढना तो पडेगा ही परन्तु एक चिन्ता सभी शिक्षकोंं और अभिभावक में स्पष्ट थी कि सारा काम धन्धा बन्द हो चुका है। इस नये युग में जिन्दा कैसे रह पायेगें ये आने वाली पीढी। जबकि भारत एक कृषि प्रधान देश है और काम सब प्रदूषण बढाने वाले किये जा रहे हैं।
बढती चिन्ता जायज है क्योंकि अर्थव्यवस्था ही सभ्यता का निर्माण करती है और आज अर्थव्यवस्था का आधार पश्चिमी विकास बनाया जा रहा है। शिक्षक की इस चिन्ता पर जब पूरा वर्णन लिया ताेे ज्ञात हुआ कि भारतीय परिवेश से अलग होकर कभी भी प्रकृति जिन्दा नहीं रहने देगी क्योंकि प्रकृति अपने को स्वस्थ करने का हर तरीका जानती है।
सुनील शुक्ल
Discover more from Satyam Live
Subscribe to get the latest posts sent to your email.