वायरस से बचाव अभियान (भाग-4)

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संक्रमण रोग सदैव हमारे शरीर में आते जाते रहते हैं परन्‍तु जो काल को जानता है उसकी रक्षा महाकाल करते हैं।

आयुर्वेद के माध्‍यम से सदैव सुरक्षित जीवन के लिये एक योजना ‘वेद ज्ञान है सच्‍चा विकास‘ आइये वायरस से बचाव अभियान में एक कदम और आगे बढाते हैं सुुुुुुुुुुुुुुरक्षित और शान्‍त जीवन आने वाली पीढी को देने का प्रयास। वैज्ञानिक स्‍व. श्री राजीव दीक्षित एवं गायत्री परिवार का आभार है जिनकी पुस्‍तकों से सहयोग मिला।

सत्‍यम् लाइव, 17 मार्च 2020,दिल्‍ली। भौतिक कीटाणु विनाशनम् के अनुसार औषधि मानकर ही प्रयोग में लाना चाहिए। अर्थात् नीम, देशी गाय का मूत्र से बना गौनायल, देशी गौधृत, देशी गाय केे गोबर से बनी धूपबत्‍ती, हवन कुण्‍ड या मच्‍छर की क्‍वाइल आदि सहित हवन में प्रयोग की गयी सामग्री जैसे ग्रह की शान्ति के लिये, यज्ञ करते समय समिधा के रूप में सूर्य के लिये-आक, चन्‍द्रमा-पलाश, मंगल-खदिर, बुध-अपामार्ग, गुरू-अश्‍वत्‍थ, शुक्र-गूलर तथा शनि- शमी आदि का प्रयोग किया जाता है। इससे यज्ञ के समय उत्‍पन्‍न होने वाली अग्नि का नाम भी बताया है। उस अग्नि के उत्‍पन्‍न होने से ही प्रदूषण से मुक्ति मिलती होगी पर आज तथाकथित वैज्ञानिक युग जिसमें होगा वही जो पश्चिमी सभ्‍यता से कहा जाये।

वयस्‍क यदि किसी भी संक्रमण से ग्रसित होता है तो उसके तीन कारण बताये गये हैं –

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नवयुवक मेें श्वसनक (न्‍यूमोनिया), आन्त्रिक ज्‍वर (टाइफाइड), विस्‍फोटक (शीतल), उपदंश प्रतिश्‍याय (जुकाम) और अतिसार का आज-कल का मुख्‍य कारण है कि अत्‍यधिक फास्‍ट फूड खाकर अपने आप को उन्‍नति के शिखर पर दिखाना। शराब, सिगरेट और बीडी पीना तथा टीवी और मोबाईल के माध्‍यम से उनको भारतीय संस्‍कृति और सभ्‍यता से दूर करने का कार्य स्‍वयं उनके माता-पिता और शिक्षक गण कर रहे हैं। मैं तुलसीदास जी कृृृत उत्‍तर काण्‍ड केे ९६ नम्‍बर दोहे से जो कलयुग के बारे में लिखा गया है उससे सहमत हूॅ। कलयुग ने अपनी पकड इतनी मजबूत की है कि श्रीराम सांस्‍कृति शोध संस्‍थान न्‍यास की मीटिंग में भारतीय संस्‍कृति और सभ्‍यता पर चिन्‍ता जता रहे, ज्ञानी जन के बीच में रखी तब वो काल को पहचानने की आवश्‍यकता नहीं समझ रहे हैं और महाकाल के आरध्‍य श्रीराम की भक्ति कराने के लिये चिन्‍ता जता रहे थेे।

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अब आज के वायरस के साथ इसकी औषधि का भी वर्णन कर देते है पर इन सभी लेखों को लिखने का मेरा एक ही मकसद था कि सन्निपात होने का मुख्‍य कारण मौसम के परिवर्तन का होना होता है। साथ ही भारतीय शास्‍त्र में चैत्र मास में नीम करने की बडी उपयोगिता बताई गयी है और वो ऋतु ही है जब नॉवल कोरोना आया अब आप स्‍वयं सोचो कि वो कैसे जीवित रह सकता है इस महा औषधि नीम और तुलसी माता के आगे। नीम तो नीम रहा कोई भी वायरस बकायन नामक वृृृृक्ष केे आगे जीवित नहीं रह सकता।

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कहते हैं चीन के वूहान शहर से जन्‍मा ये वायरस इस वायरस हम सब अपने शरीर को नियमित दिनचर्या केे दम पर पनपने ही नहीं देते। उस पर हमारे यहाॅॅ सूर्य अपने ताप से किसी भी बडे से बडे वायरस को 27 दिनों में या 27 डिग्री के तापमान पर स्‍वत: समाप्‍त हो जाता है। ये बात भारत के भूतपूर्व वैज्ञानिक तथा भारत के प्रखर प्रवक्‍ता राजीव दीक्षित जी के मुॅह से आपने सुनी होगी। फिर भारत मेें सिर्फ प्रकृति के साथ चलने पर किसी भी वायरस को समाप्‍त किया जा सकता है यहीं से अहिन्‍सा का जन्‍म होता है। इसके पश्‍चात् भी यदि ये वायरस आपको परेशन करता है तो वैद्य श्री रत्‍नाकर जी कहते हैं कि आयुर्वेद में तो वातावरण को शुद्व करके अर्थात् हवन करके ही किसी भी वायरस को समाप्‍त किया जा सकता है। इसके अलावा होम्‍योपैथी में आर्सेनिकम एल्‍बम 30 (Arsenicum Album) आती हैै वो खाली पेट तीन दिन तक सुबह सुबह लेेेेनी है और वायरस समाप्‍त। इसी तरह से आयुर्वेद मेें पिप्‍पली, मारीच तथा शुंठी का पाउडर 5 ग्राम बना लें और तुलसी 3-5 पत्‍तों 1 लीटर पानी मेें डालकर उबाल लें जब पानी आधा रह जाये तब इसे एक बोतल में रख लें। हर एक घंटे में एक एक घूंट पीते रहें। अगस्‍त्‍य हरीत की 5 ग्राम, दिन में दो बार गर्म पानी के साथ ले सकते हैं। प्रतिदिन देशी गाय का बना पंचगव्‍य डालते रहें एवं वातावरण की शुद्वि के लिये बताये गये तरीके से यज्ञ सहित मंगलगान करना।

स्‍वस्‍थ रहने से ही मोझ की प्राप्ति सम्‍भव है अत: ज्ञान के माध्‍यम से अपरिग्रह का निर्वाह करते हुए सदैव स्‍वस्‍थ रहने का प्रयास ही परमात्‍मा के तत्‍व का ज्ञान प्राप्‍त कराता है। ….. जय गौ मातरम्

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उपसम्‍पादक सुनील शुक्‍ल

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