सत्यम् लाइव, 15 जून 2021, दिल्ली।। सुशांत सिंह राजपूत को दुनिया से गए आज एक साल पूरा हो चुका है. 14 जून 2020 को सुशांत सिंह राजपूत को उनके मुंबई के बांद्रा स्थित अपार्टमेन्ट में मृत पाये जाते हैं। इस विषय को जरा ध्यान देकर समझते हैं अंकित पराशर की कलम के माध्यम से। आई एम विटवीन न्यूरॉन्स एंड नैरेटिव……. हू एम आई?…… एसएसआर,
मै कौन हूॅ? ये कथन हैं दिवंगत अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत के। आमतौर पर हमें लगता है बॉलीवुड अभिनेता उतनी गंभीर बात नही करते। हसीं ठिठोली, फ्लर्ट और ह्यूमेरिस्टिक बातें उनकी छवि को कूल बनाती है और उससे उनका पेशेवर ऑब्जेक्टिव पूरा होता है। सुशांत को जब किसी रियलिटी शो आदि में देखा होगा तो आपने भी यही पाया होगा।
स्वाभाविक है कि अपने पेशेवर छवि को मेंटेन रखने के दबाव उन पर असर होगा ही लेकिन पेशे से पेश से अलग भी एक जीवन होता है। जिससे उस व्यक्ति के व्यक्तिगत रूचि के साथ, जीवन के कुछ सिद्धान्त होते हैं जिसके दम पर वो अपना जीवन यापन करता है। ऐसे ही जब आप सुशांत के जीवन के उस आयामों में] आप थोड़े गहरे उतरेंगे तो पाएंगे कि सुशांत एक उच्च वैज्ञानिक, दार्शनिक और आध्यात्मिक बौद्धिकता के धनी थे। भारतीय वाङ्गमय में एक प्रश्न बड़ा ही प्रचलित है कि ‘मैं कौन हूं’।
सभी दार्शनिकों और आत्मविदों ने अपने-अपने अनुसार इसकी व्याख्या की है। शीर्षक में जो कथन है वो इस प्रश्न पर सुशांत की व्याख्या है। इस वाक्य में जो मुख्य शब्द है। एक न्यूरॉन्स और दूसरा नैरेटिव। न्यूरॉन्स को क्वांटम फिजिक्स में कॉन्सियसनेस के यूनिट कहते हैं। इसे अस्तित्व का आधार माना जाता है। जबकि नैरेटिव एक सामाजिक और वैचारिक अवधारणा है। जैसे मैं अपने अस्तित्व के बारे में अगर यह मानता हूं कि मैं उक्त नाम का व्यक्ति फलाने व्यक्ति का पुत्र हू तो यह एक नैरेटिव है जो इस समाज में बिल्ड हुआ है, समाजीकरण के अंतर्गत हमें सिखाया गया है।
यह हमारे अंदर का बोध नही है बल्कि बाह्य प्रेरित है। सुशांत इस कथन में मानते हैं हमरा एक्चुअल और एब्सोल्यूट एग्जिस्टेंस इस न्यूरॉन्स और नैरेटिव के बीच में है।हम केवल नैरेटिव नही हैं न केवल न्यूरॉन्स। सुशांत के ऐसा कहने के पीछे विवेकानंद, जीन पॉल सार्त्र और जे कृष्णमूर्ति की प्रेरणा रही थी। सार्त्र का अस्तित्ववाद कहता है कि मानव जिस सीमा तक फ्रीडम बेस्ड चिंतन को लेकर जाएगा उस डिग्री तक मनुष्य बनेगा। सोशल नैरेटिव का कोई महत्व नही होता। सुशांत इंजीनियर थे उन्हें आधुनिक विज्ञान की भी समझ थी और दर्शनिकता का भी। इसलिए वो ऐसा कह कह पाए। न्यूरॉन्स को अस्तित्व मानना उनका वेदान्त के समझ को दर्शाता है। दरअसल वेदान्त भी व्होल कॉस्मॉस में सिंगल कॉन्सियसनेस को अस्तित्व मानता है।
सुनील शुक्ल