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नई दिल्ली । रेलवे की खान पान नीतियों को लेकर समाजसेवी मेधा पाटेकर ने कई सवाल उठाए है। मेधा पाटेकर ने कहा कि रेलवे की नई कैटरिंग पालिसी एक तरह से रेलवे को निजीकरण की राह पर ले जाने वाला है। उन्होंने इस वर्ष से रेल बजट को मुख्य बजट के साथ समायोजित किये जाने पर भी सवाल उठाते हुए कहा किस इस कदम से रेलवे की स्वतंत्रता को समाप्त किया जा रहा है। मेधा पाटेकर ने यह बात आज यहां ‘अखिल भारतीय रेलवे खान-पान लाइसेंसिसीज वेलफेयर एसोसिएशन’ की ओर से आयोजित संवाददाता सम्मेलन में कही। इस मौके पर एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष रविन्द्र गुप्ता भी मौजूद थे।
मेधा पाटेकर ने कहा कि वह स्टेशनों पर खाने पीने का सामान बेचने वाले लाइसेंसी वेंडरों की रोजी रोटी बचाने के साथ-साथ ट्रेनों सफर करने वाले गरीब यात्रियों को सस्ते में खाने पीने का सामान उपलब्ध करना के लिए ‘रेल बचाव, यात्री बचाओं, खानपान आंदोलन’ में ‘हिंद मजदूर यूनियन’ का समर्थन देने का ऐलान किया। मेधा पाटेकर ने रेलवे की नई कैटरिंग पॉलिसी पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि नई नीति से स्टेशनों पर रोजगार पाने वाले एक लाख परिवार का रोजगार खत्म हो जाएगा। उन्होंने कहा कि आईआरसीटीसी को कैटरिंग का पूरा जिम्मा देने का मतलब बड़े प्राइवेट प्लेयर के हाथ में खान-पान का ठेका देना है। उन्होंने कहा कि बडे प्लेयर के आने के बाद यात्रियों को 10 रुपये के खाने का सामान 100/- रुपये में खरीदने की मजबूरी हो जाएगी। रेलवे की नई कैटरिंग पॉलिसी से आम आदमी सफर करेगा।
मेधा पाटेकरन ने कहा कि नई खान-पान नीति में सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भी अवहेलना की जा रही है। उन्होंने कहा कि सभी यात्रियों तक तभी सस्ते में खाना उपलब्ध होगा जब स्टेशनों पर टॉली, खोमचा, लाइसेंसी वेंडरों को खाद्य पदार्थ बेचने की अनुमति मिलेगी। उन्होंने का कि एक साल में जितने लोग विमान में यात्रा करते है उतने लोग रेल से एक दिन में यात्रा करते है।अखिल भारतीय खान-पान वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष रविंद्र गुप्ता ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जब आप रोजगार दे नहीं सकते तो उसे छीनने का अधिकार नहीं है, बावजूद रेलवे ऐसे नियम बना रहा है कि लाइसेंसी वेंडरों का रोजगार खत्म हो जाए। उन्होंने कहा कि लाइसेंसी वेंडरों से कहा जा रहा है कि वे टेंडर तभी कर सकते है जब उनका टर्न ओवर 35 लाख रुपया का होगा, जबकि यह नामुमकिन है। इसका फायदा भी बड़े-बड़े प्लेयर को मिलेगा।
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