जीएम फसल का विरोध क्‍यों

नई दिल्‍ली,आज की जीवनशैली सिर्फ विकास के मार्ग पर दौडती नजर आ रही है, विकास किस दिशा में ले जाकर खडा करेगा ये किसी को नही पता है परन्‍तु एक होड लगी है कहीं ऐसा ही जीएम फसल के साथ तो नही हो रहा है ऐसा जानने के लिए सत्यम् लाइव की टीम ने इस पर शोध कार्य किया है सबसे पहला ही प्रश्‍न मन में आया कि जीएम शब्‍द क्‍या है जेनिटिकल मोडिफाय, अर्थात् अनुवांशिक परिवर्तन, दूसरा प्रश्‍न कब चालू से चालू हुआ तो इस शब्‍द का अर्थ बहुत पुराना है इसमें जीएम, क्रीम खुजली तथा त्‍वचा के रोग को समाप्‍त करने किया जा चुका है, हमारे लिए इतना उपयोगी है इस पर चर्चा नहीं है, जैसे बिटामिल जीएम क्रीम, क्‍लोबेटा जीएम क्रीम इत्‍यादि

इस जीएम फसलों को लेकर दो तरह के बिचार अब तक सामने आये हैं, पहला विरोधी दल तथा दूसरा पक्ष दल, विरोधी दल का स्‍पष्‍ट मानना है कि इन फसलों के विकास में अमेरिका तथा अन्‍य देशों की बडी कम्‍पनी अनुसंधान कर रही है, इसके कारण आशांका जतायी जा रही है कि देश की खा सुरक्षा परतंत्र हो जायेगी और जहां वर्ष 1998-99 से चलने वाले कई तरह के गरीबी उन्मूलन तथा रोजगार सृजन कार्यक्रमों के दोनाे अंग 1. स्व-रोजगार योजना तथा 2. दिहाड़ी रोजगार योजना दोनो प्रवाहित हाेगीं, वर्तमान में भारतीय कृषि व्‍यवस्‍था में किसानो को बार बार बडी बडी कम्‍पनियों से बीज खरीदने पडेंगे, विरोध के पीछे तर्क ये भी है कि जैविक विविधता समाप्‍त हो जायेगी, कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि बहुराष्‍ट्रीय बीज कम्‍पनी द्वारा जर्मनी में सन् 2005 में फसलों के बारे में चूहों पर जो शोध कार्य किये हैं उन्‍हें नजर अन्‍दाज नहीं या जा सकता है ये भी सोचनीय है कि जहां एक तरफ फसल, जीव जन्‍तु और मनुष्‍य पर असर पडेगा तो क्‍या पर्यावरण की रक्षा की जा सकती है

वहीं दूसरी तरफ पक्ष दल जिसमें वैज्ञानिक, कृषि संगठन तथ्‍ाा सरकारी तंत्र का कहना है कि देश की बढती आबादी को भोजन इसके जीएम फसलों के बिना नहीं उपलब्‍ध्‍ा कराया जा सकता है, कृषि क्षेत्र में किसानो की आर्थिक स्‍थिति को सुधारने का एक मात्र यही रास्‍ता है, इन समर्थकों का ये भी मानना है कि फसलों पर कीटनाशाक कम होगा अत खेती की लागत कम होगी, साथ ही पर्यावरण को होने वाला नुकसान भी कम होगा, जीएम फसलों से जलवायु का विशेष दुष्‍प्रभाव नहीं पडेगा, बीमारयां भी कम आयेगी, तथा ये वो फसल है जिसे सूखे और बाढ का प्रभाव कम होगा,

किसी गलत का विरोध उचित है परन्‍तु विवेक पूर्ण तर्कों के साथ, अगर तर्क गलत सिद्व हुए तो आप को ही नहीं आने वाली पीढी को भी ये कष्‍ट सहना पडेगा, कुछ तथ्‍य पर आपको स्‍वयं निर्णय लेना होगा जैसे कि बीज का लागत कम नहीं है, फिर लागत कैसे कम होगी, जीएम को अगर 2005 में चूहों पर प्रयोग कर देखा जा चुका है तो क्‍या मनुष्‍य पर प्रभाव नहीं पडेगा, विचारणीय है

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दोनो के तर्को पर निर्णय अब आपको लेना है, कौन गलत सिद्व हाेगा और कौन सत्‍य ये समय आने पर इन्‍तजार नहीं किया जा सकता है क्‍यों कि पिछले परिणाम स्‍वयं अपनी परिभाषा को अब परिभाषित करने लगे हैं 1960 के बाद उच्च उपज बीज (HYV) का प्रयोग शुरु हुआ। इससे सिंचाई और रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का प्रयोग बढ़ गया। इस कृषि में सिंचाई की अधिक आवश्यकता पड़ने लगी। जिस कारण इसे हरित क्रान्‍ति कहा गया।

गुजरात की एक संस्‍था से भ्‍ाी इस पर जब चर्चा हुई तो उन्‍होंने जीरो बजट की खेती को प्रारम्‍भ कराने को कहा और हमारी टीम से ये वायदा किया कि अगर कोई जैविक खेती को सीखना चाहता है तो उसे उसी के गॉव में बिना पैसे लिये बताने जाते हैं साथ ये भी बताया की ऐसी बहुत सी संस्‍था देश में अपने खर्चे पर कार्य कर रही है

सत्यम् लाइव

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