सत्यम् लाइव, 31 जुलाई, 2021, दिल्ली।। उधम सिंह का जन्म 26 दिसम्बर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गाँव में हुआ था। सन 1901 में उधमसिंह की माता और 1907 में उनके पिता का निधन हो गया। इस घटना के चलते उन्हें अपने बड़े भाई के साथ अमृतसर के एक अनाथालय में शरण लेनी पड़ी। उधमसिंह का बचपन का नाम शेर सिंह और उनके भाई का नाम मुक्तासिंह था जिन्हें अनाथालय में क्रमश: उधमसिंह और साधुसिंह के रूप में नए नाम मिले। इतिहासकार मालती मलिक के अनुसार उधमसिंह देश में सर्वधर्म समभाव के प्रतीक थे और इसीलिए उन्होंने अपना नाम बदलकर राम मोहम्मद सिंह आजाद रख लिया था जो भारत के तीन प्रमुख धर्मों का प्रतीक है।
सन् 1919 में अमृतसर का एक अंग्रेज अधिकारी जनरल डायर था जिसने रोलेट एक्ट नामक एक कानून बनाया था। जिसके तहत् पर नागरिकों के मूल अधिकार खत्म हो गये थे। शेष आजादी भी समाप्त हो गयी थी। इस रोलेट एक्ट का विरोध करने के लिए 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियाँवाला बाग में एक बड़ी सभा आयोजित की गई थी जिसमें 25000 लोग शामिल हुए थे। उस बड़ी सभा में जनरल डायर ने 15 मिनट के अंदर 1650 राउंड गोलियां चलवाई थी। बहुत बड़ी संख्या में लोग बेमौत मारे गये।
25000 लोगों पर गोली चलवाने पर जनरल डायर को इनाम स्वरूप अँग्रेजी संसद उसे प्रमोशन दिया गया। लंदन भेज कर उसका ओहदा बढ़ा दिया। उधम सिंह उस समय मात्र 11 साल का था। इस ह्त्याकांड को अपनी आंखो से देखा और संकल्प लिया कि इस डायर को मैं जिंदा नहीं छोड़ूँगा। उधम सिंह गरीब घर से थे और अब माता-पिता का साया भी उठ चुका था। अनाथ आश्रम में पलकर बढ़े हो रहे थे परन्तु संकल्प कभी चैन से बैठने नहीं देता था। अब अपने संकल्प को पूरा करने के लिये लंदन जाना पड़ेगा और उसके लिये पैसों का इन्तजाम करना पड़ेगा। जिसके लिये शहीदे आजम उधम सिंह ने बढ़ई का काम किया और कुछ पैसा जोड़ा फिर किसी तरह से लंदन पहुॅचे।
13 मार्च 1940 को 21 साल की उम्र में शहीदे आजम उधम सिंह ने अन्ततः अपने जीवन के संकल्प को पूरा किया। लंदन के Caxton Hall में जनरल डायर को सम्मान के साथ मालाएँ पहनाई जा रही थी उसी स्थल पर पहुॅचकर उधम सिंह ने अपनी किताब मे छिपी बंदूक निकाली और एक साथ 3 गोलियां डायर के सीने मे उतार दी। इसी स्थल पर राजीव दीक्षित के कथन के अनुसार जब शहीदे आजम उधम सिंह ने जब अपनी रिवाल्वर वहॉ खड़े गार्ड को देनी चाही तो वो कॉप रहा था तब शहीदे आजम ने कहा कि घबराओ मत मेरी किसी से दुश्मनी नहीं है इस डायर ने बेकसूर भारत वासियों को तड़पा-तड़पा कर मारा था। आज उसका बदला मैनें पूरा कर लिया है।
उधम सिंह ने वहां से भागने की कोशिश नहीं की और अपनी गिरफ्तारी दे दी। उन पर मुकदमा चला। 4 जून 1940 को उधम सिंह को हत्या का दोषी ठहराया गया और 31 जुलाई 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई।
सुनील शुक्ल
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