सत्यम् लाइव, 17 अक्टूबर 2020, दिल्ली।। शरदीय नवरात्रि के शुभ अवसर माता सती द्वारा श्रीराम परीक्षा लेेने की कथा आप सबने सुनी होगी आज नवरात्रि के अवसर पर माता के उस स्थल का परिचय कराने का पुन: अवसर प्राप्त होता है। यह व्याख्या श्रीराम सांस्कृति शोध संस्थान के मार्ग दर्शन मेंं श्रीरामवनस्थल पर एक पुस्तक लिखने को सौभाग्य प्राप्त हुआ है उस पुस्तक में श्रीराम के वन गमन जाने के कई सारे मार्ग को आज के चित्रों केे सहित वर्णन किया है। माता सती का वाक्या यूॅ है कि माता सती भगवान शंकर से ये जिद्द कर बैठी कि मैं स्वयं भगवान राम की परीक्षा लेगें तब मानेगें कि ये परमब्रम्ह हैं। भगवान शंकर ने मना करते करते अनुमति दे दी कि जाओ परीक्षा लो जाके, होए वही जो राम रचि रखा। जैन सम्प्रदाय के तमाम ग्रन्थ ये सिद्ध करते हैं कि श्रीराम, जैन मुनि कुल भूषण तथा जैन मुनि देश भूषण जी की राक्षसों से रक्षा हेतु कुन्दल गिरि में आये थे। यहीं पर येड़ेश्वरी, एरमला के निवासी सती माँ को दिवानी माँ के नाम से पुकारते है। पंगारी गाँव में नीलकंठ मन्दिर है श्रीराम के मार्ग से 10 कि.मी. दूर प्राचीन मन्दिर का शिवलिंग सदा पानी में डूबा रहता है। जल भी कम या ज्यादा नहीं होता है। शिवलिंग को निकालने का असपफल प्रयास भी हुुुआ होगा जिसके कारण थोड़ा भंग भी है इस स्वयंभू अर्थात् जमीन में धसा माना जाता है। माता सती महाराष्ट्र के जिस स्थल पर प्रकट हुई उस स्थल श्रीराम के सामने प्रकट हुई थीं अब तक श्रीराम सांस्कृतिक शोध संस्थान को तीन मन्दिर मिले हैं उस स्थल का सम्पूर्ण वर्णन मैं यहॉ से प्रारम्भ करता हूॅॅॅ। सती माता ने श्रीराम की परीक्षा लेने के लिए प्रकट हुई थी और सीता माता का रूप रखा था। अब शब्दों के मायाजाल को जरा समझें तो येड़ेश्वरी, वेदश्री का अपभ्रंश मात्रा है, येड़ई का अर्थ मराठी में दीवानी होता है येड़सी अर्थात् येड श्री अर्थात् वेद श्री बना है तब तो ये बात अवश्य समझ में आ जाती है कि सीता माता के रूप में प्रकट होने का तथ्य सत्य लगता है। उस्मानाबाद के येड़सी में रामलिंग मन्दिर में स्नान तथा पूजन किया तथा शिवलिंग की स्थापना की। शायद यहाँ भी मुझे मेरी नानी की कहानी सत्य सी प्रतीत होती है कथा ऐसी थी कि काफी दूर सती माँ, सीता माता का भेष रखकर आगे-आगे चली हैं और लक्ष्मण जी ने भी उन्हें पहचान लिया था। (रामचरित 1/52) अतः सती जी माता के भेष में आगे-आगे चलती जाती है, और कापफी दूर तक श्रीराम उनकी तरफ देखते ही नहीं है और लखन लाल हाथ जोड़ कर उन्हें वहाँ से जाने को कहते हैं परन्तु सती माता तो परीक्षा लेने की प्रतिज्ञा करके आयी थीं जब श्रीराम उनकी तरफ मोड़कर नहीं देखते है तो अचानक उनके सामने मोड़कर खड़ी हो जाती है तब श्रीराम ने उन्हें ‘माता आप अकेली, प्रभु कहाँ है’ कहकर स्तब्ध् कर दिया। फिर भी उनके साथ कुछ समय तक उसी भेष में रहकर चलती रहती हैं, कुछ देर बाद प्रभु श्रीराम उनसे अनुरोध् भरे शब्दों में स्वातविक रूप में आ जाने को कहते हैं। इस स्थान की कथा कभी अपनी नानी से सुनने के पश्चात् आज वर्णन करते हुये हर्ष होता है और नानी की कहानी की याद भी ताजा कर देती है। जहाँ जटायु आश्रम अवश्य भ्रमित करता है परन्तु तुलजापुर में श्रीरामवरदायनी वो स्थल है जहाँ पर उन्होंने श्रीराम को सपफलता के लिए आशीष दिया था इस क्षेत्रा में ‘‘तू का इथे’’ से ‘‘तू का आई’’ बना अर्थात् ‘‘मां आप अकेली’ से तुलजा नामक शब्द की उत्पत्ति हुई होगी। यहीं पर एक मन्दिर लक्ष्मण लिंग के नाम से मन्दिर है, जहाँ पर शमशान की ताजा राख लाकर शिव जी का अभिषेक किया जाता है। इसी क्षेत्र में गोंदल नामक परम्परा है जिसमें दम्पत्ति तथा नव-दम्पत्ति गाते-बजाते सुखमय जीवन की कामना करने आते है, जिन भक्तों के शरीर में माँ प्रवेश कर जाते है उन्हें अपनी शुद्ध भी नहीं रहती उनके हाथ में जलती मशाल पर श्रद्धालु तेल डालते है मनोकामना पूरी हो जाने पर माँ के ऑचल को दूध्, दही, श्रीखण्ड, आम, आमरस से भर देने की परम्परा आज भी है। माता सती जी श्रीराम के आगे-आगे ,सीता माता के भेष में कापफी दूर तक चली है परन्तु श्रीराम के कहने के पश्चात् उन्हें चारों ओर श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण तीनों दिखाई दे रहे थे। तब श्रीराम के अनुरोध् पर सती माता वास्तविक रूप में प्रकट हुई जिस स्थल पर अपने रूप में प्रकट हुई थी उस स्थल पर घाटशिला है, मान्यता के अनुसार ये शिला लगातार बढ़ रही है, भक्त इस पर तेल अर्पण करते है। इस स्थल पर माता ने उन्हें दक्षिण दिशा पर जाने का सुझाव दिया, उस्मानाबाद के नलदुर्ग से 3 कि.मी. दूर नदी के किनारे पहाड़ी पर रामतीर्थ, नलदुर्ग पर शिवलिंग की स्थापना की थी। यहाँ बोरी नदी में रामकुण्ड, लक्ष्मण कुण्ड तथा सीता कुण्ड बने है तथा खेतों के नाम भी राम और सीता है। इस स्थल पर सिंहासन आरूढ़ होने के पश्चात् श्रीराम के आने का भी संकेत मिलता है, अर्थात् इस स्थल को श्रीराम के सानिध्य का दो बार अवसर मिला है। किन गाँव के रामतीर्थ में श्रीराम के चरण चिन्ह के दर्शन करने का सौभाग्य भी प्राप्त होता है।
सुनील शुक्ल
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