सत्यम् लाइव, 16 सितम्बर 2020, दिल्ली।। दुनिया भर में किसी भी प्राणी को जीवित रहने के लिये पेट का भरना और यदि पेट ही नहीं भरेगा तो फिर स्वर्ग उसे दे दो उसका इस धरा पर जीवन व्यर्थ सा लगेगा। हाॅ इस बात को स्वीकार करता हूॅ कि भारत की धरा पर ऐसे ऋषि-मुनियों ने जन्म लिया है जिन्होंने जीवन को चलाने के लिये आहार को औषधि के भेष में स्वीकार किया है परन्तु स्वीकार तो किया है आज की भारत की जो दशा पर उस पर ये आवश्यक है कि पहले गरीब की रसोई को आटा मिले और ये बहुत कठिन कार्य नहीं है परन्तु तभी जब स्वार्थ को छोड़कर स्वतंत्रता का सही अधिकार देते हुए गरीब को कृषि प्रधान देश में, डाटा की जगह आटा के लिये जमीन सौंप दी जाये और अगले 5 वर्ष देश को जीरो प्रतिशत टैक्स पर चलाया जाये! ये कार्य अपरिग्रह को न अपनाते हुए भारतीय परिवेश में छिपे, पश्चिमी सभ्यता के जानकार कभी नहीं होने देगें। ये व्यवस्था अंग्रेजों ने जो प्रारम्भ की थी वो आज भी चल रही है जिसमें भारतीयता कहीं नहीं थी वैसे ही आज भारतीय मन्दिर तक में भारतीयता समाप्त होने के प्रमुखता से शासन व्यवस्था ही जिम्मेदार है।
भारतीय शास्त्रों के अध्ययन को समाप्त करने की योजना जो मैकाले ने बनाकर क्रियान्वित की थी उसकी पूर्ति करने में अंग्रेजों के शुभचिन्तक भारतीय जनमानस में न तो उस समय कमी नजर आती है और न ही आज! भारत के नेताओं ने उस भूमिका को पूरी तरह से लागू किया है वहीं मीडिया भी जाने अन्जाने मैकाले शिक्षा पद्धति का भरपूर समर्थन करते हुए, आज के भारत को ऐसा दिशा पर लाकर खड़ा कर दिया है कि अब कृषि प्रधान भूमि पर रसोई में, आटा हो या न हो परन्तु हर हाथ में मोबाईल और मोबाईल में डाटा बहुत आवश्यक है। भारतीय दृष्टिकोण के प्रखर कलयुगी जानकारों ने डाटा को विकास की परिभाषा दे डाली है और इसे ऐसा विकास बनाकर मढ़ दिया है कि आज की माँ-बाप भी अपने बच्चों को आटा से परिचय कराने को पिछड़ापन समझने लगे है और डाटा देकर, प्रसन्नता पूर्वक बताते हैं कि मेरा बेटा बहुत स्मार्ट हैं, मोबाईल चला लेता है और शिक्षा के नाम पर आज का बच्चा प्रातः उठते ही कलुयगी गुरू रूपी मोबाईल को प्रणाम करता है और रात्रि 11 बजे तक अपने गुरू की चरणों में रहकर, शिक्षा प्राप्त करता रहता है। इससे भी बढ़कर आश्चर्य तब होता है दिल्ली प्रदेश के शिक्षा मंत्री कोरोना काॅल में, बिना परीक्षा लिये जो परिणाम घोषित किया जाता है उससे अपनी कार्यकाल की महिमा मण्डिप करते हुए नहीं थकते हैं जबकि 2020-21 की कक्षा-10 की मैन्टल मैथ की पुस्तक में, शिक्षा विभाग के सभी अधिकारियों के नाम के नीचे जो विद्यालय की जगह पर विधालय लिखा हुआ है और विश्वस्तर की उच्च शिक्षा व्यवस्था को भारत में लाने की बात कही जाती है भारत के शिक्षा मंत्री सहित तमाम मंत्रियों के द्वारा। जबकि भारत समय ने पूरी दुनिया को शिक्षा दी है परन्तु अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था के कलयुगी ज्ञानियों ने जब से भारत देश की कमान संभाली है तब से तक्षशिला और नालन्दा जैसे विश्वविद्यालय की धूमिल करके पश्चिमी ज्ञान को भारत पर लादना प्रारम्भ कर दिया। आज की सुरक्षा का दृष्टिकोण अपनानते हुए भारतीय प्रकृति एवं पर्यावरण का जानकर पण्डित (गीता) वर्ग, तुलसीदास जी के उत्तरकाण्ड के दोहा नम्बर 97 को सत्य साबित करने लगा है। ‘‘कलिमल ग्रसही धर्म सब लुप्त भये सब ग्रन्थ, दम्बिनी फिरि निजि अल्प मति प्रकट किये वहु पंथ।।’’ तनिक विचार कीजिये कि जिसके पेट में रोटी नहीं होगी उसका दिमाग कैसे चलेगा ये बात आज के माॅ-बाप को तथा नवयुवक को, अभी समझ में नहीं आ रही है ये तब समझ में आयेगी जब वो अपने शरीर को सदैव के लिये रोगों के घेरे में डाल देगा। माता-पिता को भी अपना छोटो सा बेटा डाटा के साथ खेलता बडा स्मार्ट दिखाई दे रहा है जबकि मिट्टी के साथ खेलता बच्चे को वायरस पकड़ रहा है। भारत माता के आॅचल में सिर्फ वायरस है या फिर इसी धूल भरी मिट्टी में या फिर कीचड़ में रत्न छिपे हुए है एक बार अपने नजर पश्चिम से हटाकर भारत माता की तरफ तो लेकर आओ फिर देखो पश्चिमी का विकास बौना दिखाई देगा। भारत के शीर्ष पद पर बैठे हुए ज्ञानियों तथा मीडिया के लोग, जो विदेश की जमीं की महिमा करते हुए नहीं थकते हैं वो सब झूठे तथा मक्कार नजर आने लगेगें। सूर्य की गति के साथ पूरे विश्व को शिक्षा देने वाला भारत, आज इन्हीं मैकाले के वंशज की वजह से पराई संस्कृति और सभ्यता को अपनाकर विकास होते हुए सपने को देख रहा है। स्वर्ग की सीमाओं को बढ़ाने का जो कार्य अंग्रेजों ने प्रारम्भ किया था वही आज इस दशा पर आ पहुॅचा है कि आज भारत की रसोई में आटा हो या न हो, परन्तु सबके हाथ में डाटा अवश्य होना चाहिए। इस डाटा से आटा लाने का सपना आज की विवश काले अंग्रेजों की सरकार दे रही है वो सब विदेशी खेतों से या फिर चक्की के मालिकों के पास आ रहा है। गोरे अंग्रेजों का जो सपना भारत क्रान्तिकारियों ने देखा था उसे काले अंग्रेजोें ने वैसे ही चलने दिया और जिस पर सच्चे भारत माता के लाल ने उसे सही करने को सोचा, उसे बीच से हटाने का कार्य भी हुआ।
सुनील शुक्ल
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