कृतिका नक्षत्र को ”ब्राम्‍हण काल” कहते हैंं….. लोकमान्‍य तिलक

सत्‍यम् लाइव, 30 अक्‍टूबर 2020, दिल्‍ली।।शरद पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ के साथ, भारत के शस्त्रों को छुपाने कार्य आज भी प्रारम्भ है। कोई पढ़ना नहीं चाहता है क्योंकि गुगल बाबा है न, सब उत्तर देने के लिये। अर्थर्ववेद का एक सूत्र कहता है कि सृहवमग्ने कृत्तिका रोहिणी चास्तु भद्रं मृगशिरः शमाद्र्रा। पुनर्वसू सुनूता चारू पुष्यो भानुराश्लेषा अयनं मघा मे।।” अर्थः- हे अग्निदेव! कृत्तिका नक्षत्र और रोहिणी नक्षत्र हमारे लिये सुखपूर्वक आवाहन करने योग्य हो। मृगशिरा नक्षत्र कल्याणप्रद हो। आद्र्रा शान्तिकारक हो। पुनर्वसु श्रेष्ठ वाक्यशक्ति देने वाला हो एवं उत्तम फलदायक हो। आश्लेषा प्रकाश देने वाला तथा मघा नक्षत्र हमारे लिये प्रगतिशील होने का मार्ग प्रशास्त करने वाला हो। अथर्ववेद के नक्षत्र सूक्त को पढ़ने के बाद लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जी ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘ओरायन’ (सन् 1893) में, कृतिका नक्षत्र का प्रमुखता के साथ वर्णन किया। मेरा सौभाग्य था कि उसका वर्णन अथर्ववेद में देखने को मिला। कृतिका नक्षत्र की प्रमुखता का आधार ही ‘वेदों का काल निर्धारण’ सुनिश्चित किया गया है। तिलक जी का मानना है कि जिन दिनों में कृतिका नक्षत्र से नक्षत्र चक्र का आरम्भ होता है। उसी नक्षत्र को आधार मानकर दूसरे नक्षत्रों की गति की तथा दिन-रात की गणना की जाती थी और इसी काल को ‘‘ब्राह्मण काल’’ कहा जाता है। तिलक जी का कथन है कि संहिताकाल इसे पूर्व इसे ही ”मृगशिराकाल” कहते थे। अब यहाॅ पर आज जिसे ”ब्राह्मण काल” कहते उसे जानने का प्रयास किया तो उत्तर साफ मिलता है कि ”अष्ठदश भुजाधारी” जगतारिणी जगदम्बिके ने मानव की रक्षा के लिये 18 तरह की प्रकृति को सजाया है और उसे अपनी 18 भुजाओं से संसार का पोषण करती है और इसी 18 भुजाओं की छाया में रहकर ज्ञान प्राप्त करने वाले को ब्रम्हाण कहते हैं जो सम्पूर्ण प्रकृति की रक्षा के लिये अहिन्सात्मक पद्धति जो सूर्य देव की गति को बताती है उसे जानकर सबका पोषण करती है। अभी भी इसका वर्णन अधूरा समझ में आया है यदि भगवान शंकर की कृपा रही तो अवश्य ही इसका पूरा वर्णन चन्द्रमा की गति सहित करूॅगा। क्योंकि चन्द्रमा की 16 कलाओं से परिपूर्ण होने का अर्थ ये है कि वो अब वो सूर्य के 240 अंश होने पर अपनी गति की शीतलता से सम्पूर्ण धरती का पालन करने वाला है। अत: शरद पूर्णिमा पर रात्रि को निकलने वाली चांद की किरणें स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होती हैंं उससे दमा, श्वास व एलर्जी जैसे रोगों के लिए यह किरण कारगर साबित होती हैंं। पूर्णिमा पर सभी पौष्टिक मेवों सहित देशी गाय के दूध में खीर बना कर खुले स्थान पर रात्रि में ऐसे सुरक्षित रखें कि पूरी रात, चंद्र किरणें अपना अमृत इस पर बिखेरती रहें। इस खीर प्रातः काल निःसंतान दंपति सर्वप्रथम इसका भोग गणेश जी को लगाएं, फिर एक भाग ब्राह्मण, एक भिखारी, एक कुत्ते, देशी गाय, एक कौवे को दें, फिर पति-पत्नी स्वयं खाएं और परिवार के सदस्यों में भी बांटें। आज की पचांग के अनुसार शुक्रवार को पूर्णिमा तिथि सायंकाल काल 5.50 से शुरू होगी जो शनिवार को रात्रि 8.20 तक रहेगी। शरद पूर्णिमा रात्रिकालीन पर्व है इसलिए पूर्णिमा तिथि शुक्रवार की रात में रहने से शरद पूर्णिमा शुक्रवार की रात को मनाई जाएगी। सत्यनारायण भगवान का व्रत शनिवार को होगा। ज्योतिष शास्त्र में अलग-अलग योग संयोग का उल्लेख है। इनमें अमृतसिद्घि, सर्वार्थसिद्घि, त्रिपुष्कर, द्विपुष्कर या रवियोग विशिष्ट योग माने गए हैं। शरदपूर्णिमा पर मध्यरात्रि में शुक्रवार के साथ अश्विनी नक्षत्र होने से अमृतसिद्घि योग बन रहा है। इस योग में विशेष अनुष्ठान, जप, तप, व्रत किया जा सकता है। चन्‍द्रमा की इस कला को हिन्‍दु के यहॉ ही नहीं अपितुु मुस्लिम भी अपना त्‍यौहार मनाते हैं और कहा जाता है कि नवींं मोहम्‍मद साहब का जन्मदिवस रूप में मनाते हैं।
सुनील शुक्‍ल

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