सत्यम् लाइव, 28 जुलाई 2020, दिल्ली।। श्रीराम सांस्कृतिक शोध संस्थान न्यास के संस्थापक डॉ. राम अवतार शर्मा जी ने, श्रीराम के वन गमन मार्ग को खोज कर जो कार्य किया है वो अत्यन्त सराहनीय कार्य है। इस विषय पर कई बार डॉ. राम अवतार साहब के साथ बैैठकर चर्चा करने को मिली है और इस व्यापक विषय को समझकर जो अंश मात्र सीख पाया हूॅ उसके लिये में अपने आप को धन्य मानता हूॅ साथ ही डॉ. साहब के कथनानुसार जो इस व्यापक विषय को अपने लेखनी में उतार पाया हूॅ उसे मैनें ”श्रीराम चरित्र स्थल” में लिख दिया हैै अभी यहॉ पर डॉ. साहब के इस प्रयास पर कुछ प्रश्न पूछ कर नवयुवक तक पहुॅचाने का उद्देेश्य है कि कैसे ये महान कार्य डॉ. साहब ने किया है?

प्रश्न: ये ऐतिहासिक कार्य करने की प्रेरणा आपको कैसे मिली ?
उत्तरः हर मनुष्य के जीवनकाल में कुछ ऐसा वक्त आता है जो बहुत सामान्य सा लगता है परन्तु कभी-कभी इन्हीं बचपन की सामान्य सी बातों की मनुष्य पर ऐसी गहरी छाप पड़ जाती है कि उसका लक्ष्य निर्धारित हो जाता है, उसी तरह मैं भी अपनी दादी, नानी, माँ या चाची, मामी से कुछ ऐसे गीत सुनता था, जिससे मुझे ये लगता था कि श्रीराम, लक्ष्मण तथा माता सीता ने अपने वनवास काल में बहुत सा कष्ट सहा था और उस समय के गीतों में इतना जीवंत चित्राण होता था कि कभी-कभी तो गीत गाने वाली माताएँ उन्हीं क्षणों को जीने लगती थी और रोने लगती थी। सबसे पहले तो उन्हें से प्रेरणा प्राप्त हुई। जैसे ‘‘सीता के तप उठी बदरिया बरसी मूसलधर’’ परन्तु जब मैं इन कष्टों की कल्पना कर मैं अकेले में सोचता था, और माताओं से पूछता था तो मन को संतुष्टि करने वाले उत्तर प्राप्त नहीं होते थे। मेरा निरन्तर चिन्तन प्रारम्भ रहता था, कई बार भगवान तो शिव के मन्दिर में बैठा इस संकल्प को आरध्य शिव के सामने दोहराया, परन्तु समय ने करवट ली और मैं दिल्ली में, गृहस्थ की चक्की में पिसकर संकल्प विस्मरण हो गया। कुछ समय उपरान्त भगवान शिव की शक्ति ने पुनः संकल्प याद कराया। फिर क्या था? तथ्य मिलते गये और मैं उसी मार्ग पर चलता रहा। मैंने श्रीरामचरितमानस, वाल्मीकि रामायण, कम्बन रामायण, रघुवंशम् तथा कई पुस्तकालयों के माध्यम से उस काल में भ्रमण किया, कुछ इस संदर्भ के विद्वानों, कथावाचकों, समाजसेवियों से सहयोग लिया और संदर्भ प्रश्न-उत्तर का सत्रा निरंतर 5 वर्षों तक चलता रहा परन्तु समस्या ने फिर मुझे घेर लिया। सरकारी सेवा में अवकाश भी एक मर्यादा में ही मिलता है आर्थिक दवाब भी आना स्वभाविक था। बाधाएँ तो आयी, दायित्व की पूर्ति श्रीराम सेवक हनुमान जी बनाते चले गये। भारत सरकार के ‘‘संस्कृति विभाग’’ ने मेरी एक परियोजना ‘‘वनवासी राम और लोक संस्कृति’’ स्वीकार कर ली अब शोध का कार्य सरलतापूर्वक होने लगा।

प्रश्न: आपकी यात्रा किस सन् से प्रारम्भ हुई थी तथा श्रीराम की पृथ्वी लोक पर अवधि कितनी पुरानी है ?
उत्तरः शोध की यात्रा सन् 1976 से प्रारम्भ हुई तथा मैनें श्रीराम वनगमन यात्रा सन् 2005 से निरन्तर की जा रही है। श्रीराम की पृथ्वी लोक पर अवधि के प्रमाण पर, मैं बहुत विद्वता नहीं रखता परन्तु यहां पर अलग-अलग मत हैं जैसे मुस्लिम विद्वान हयातुल्ला की बात करें तो उनका मानना है लगभग 23 लाख वर्ष बीत चुके हैं। सनातन परम्परा के अनुसार लगभग 9,84,000 वर्ष पुरानी मानी जाती है। प्रमाणों की दृष्टि से हम प्राचीन भवनों के अवशेष, मिलना तो संभव ही नहीं है सभी कुछ मिट्टी में मिल चुका है, न जानें कितनी बार नदियों ने अपने मार्ग बदले होगें। डा. स्वराज प्रकाश गुप्ता जी, जो स्वयं पुरातत्वविद हैं की टिप्पणी उचित लगती है कि हम तत्व का आंकलन करेंगे तो अर्थ का अनर्थ ही करेंगे। महाभारत की घटना 5000 वर्ष पुरानी है तथा रामायण को 3000 वर्ष पुराना पुरातत्व विभाग वाले कहते हैं यदि ये बात सत्य भी मान लें तो कैसे ? महाभारत काल में रामायण के पात्रों के नाम मिलते हैं परन्तु रामायण में महाभारत के पात्रों के नाम नहीं मिलते। एक तो इतने पुराने प्रमाण मिलते ही नहीं दूसरे परतंत्राता के काल में सभी मानते हैं कि मन्दिरों, पुस्ताकलयों तथा संस्कृत के ग्रन्थों को नष्ट किया गया है अतः प्रमाण की आशा क्षीण हो जाती है।

……….. क्रमश
सुनील शुक्ल
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