मैकाले शिक्षा व्यवस्था ही समाजिक पतन की जिम्मेदार

सत्यम् लाइव, 4 जुलाई 2021, दिल्ली।। भारतीय शास्त्रों के अध्ययन को मैकाले शिक्षा पद्वति ने अन्धविश्वास कहना प्रारम्भ किया था। धीरे-धीरे उस पर अमल करना भारतवासियों ने करना और कराना प्रारम्भ किया था। आज की स्थिति ये हैं कि स्वामी दयानन्द सरस्वती को पढ़ने वाले नहीं हैं बल्कि ये बताने वाले हर गली, हर चैराहे पर मिल जाते हैं कि कि सत्यार्थ प्रकाश पढ़ो। सत्य ये है कि जो आपसे कह रहा होता हैं कि सत्यार्थ प्रकाश पढ़ो उसके पास ही समय नहीं होता है कि वो स्वयं कोई भी पुस्तक पढ़ें।

आज समाज की स्थिति ये हैं कि स्वयं को तो पढ़ना नहीं है और आने वाली पीढ़ी को भी बिना ज्ञान के हिन्सा के उस मार्ग पर ले जाकर खड़ा कर देना है जो कल उन्हीं माता-पिता पर लौट कर आती हैं। हिन्दी के शब्द का अर्थ का अनर्थ निकालने वाले आज भारतीय जगत की पत्रकारिता तक में प्रवेश कर चुके हैं। लाकडाउन को कफ्यू बताकर आज के मीडिया ने गरीब का व्यापार ही नहीं बल्कि स्वस्थ को अस्वस्थ बनाकर अस्पताल तक भेजने में कानून का सहयोग किया है।

Ads Middle of Post
Advertisements

भारतीय शास्त्रों को तो अन्धविश्वास बताने में सारे के सारे मठ भी मैकाले शिक्षा पद्वति की आज पकड़ में आ चुके हैं और भारतीय सरकार भी वही शिक्षा परोसने को अपना सौभाग्य बताती हैं। शिक्षा मंत्री की यदि बात करें तो एक शिक्षा मंत्री हिन्दी ‘‘अधिकारियों’’ गलत लिखता हैं तो दूसरे प्रदेश का शिक्षा मंत्री हेमन्त ऋतु के आगमन पर शरद ऋतु की बधाई ट्वीट करके देता है और ये ऋतु की दशाओं का ज्ञान उससे भी ज्यादा व्यापक तब समझ में आता है कि सब मिलकर बसन्त ऋतु में आक्सीजन की कमी बताते हुए नजर आते हैं। ये बहुत ही चिन्तन का विषय पर कि भारत में भारतीय शास्त्रों को गलत सिद्ध करने का जो कार्य मैकाले और मैक्समूलर ने प्रारम्भ किया था उसने आज उससे व्यापक रूप धारण कर लिया है।

… सुनील शुक्ल

अन्य ख़बरे

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*


This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.