31 जनवरी, 2020, सत्यम् लाइव दिल्ली, यह वायरस कई वायरस (विषाणु) प्रकारों का एक समूह है जो स्तनधारियों और पक्षियों में रोग के कारक होते हैं। मानवों में यह श्वाॅॅस तंत्र पर पहले संक्रमण करता हैै जो अधिकांशतया खतरनाक नहीं होते हैंं परन्तु कभी कभी जानलेवा हो जाता है कोई भी वायरस प्रकृति की रक्षा न होने के कारण ही पनपता है। आज काा वैज्ञानिक जब भी विशलेषण करता हैै तो वो सदैव अपनी कमियों को न बताते हुए। कभी जानवरों पर तो कभी गरीब व्यक्ति को दोषी बना देता है। इसी तरह से ये कहा जा रहा हैै कि गाय और सूअर केे अतिसार से और मुर्गियों में श्वॉस तंत्र के कारण ये हो रहा हैै परन्तु क्या ये सत्य है ? अब इस बुद्विजीवि वर्ग पर प्रश्न उठना आवश्यक भी है क्योंकि हर बार प्रताडित होने वाला गरीबों को सत्य बताया ही नहीं जाता और सजा उसे मिल जाती है।
कहते हैं चीन के वूहान शहर से जन्मा ये वायरस इस वायरस हम सब अपने शरीर को नियमित दिनचर्या केे दम पर पनपने ही नहीं देते। उस पर हमारे यहाॅॅ सूर्य अपने ताप से किसी भी बडे से बडे वायरस को 27 दिनों में समाप्त कर सकता हैै। ये बात भारत के भूतपूर्व वैज्ञानिक तथा भारत के प्रखर प्रवक्ता राजीव दीक्षित जी के मुॅह से आपने सुनी होगी। फिर भारत मेें सिर्फ प्रकृति के साथ चलने पर किसी भी वायरस को समाप्त किया जा सकता है यहीं से अहिन्सा का जन्म होता है। इसके पश्चात् भी यदि ये वायरस आपको परेशन करता है तो वैद्य श्री रत्नाकर जी कहते हैं कि आयुर्वेद में तो वातावरण को शुद्व करके अर्थात् हवन करके ही किसी भी वायरस को समाप्त किया जा सकता है। इसके अलावा होम्योपैथी में आर्सेनिकम एल्बम 30 (Arsenicum Album) आती हैै वो खाली पेट तीन दिन तक सुबह सुबह लेेेेनी है और वायरस समाप्त।
इसी तरह से आयुर्वेद मेें पिप्पली, मारीच तथा शुंठी का पाउडर ५ ग्राम बना लें और तुलसी 3-5 पत्तों 1 लीटर पानी मेें डालकर उबाल लें जब पानी आधा रह जाये तब इसे एक बोतल में रख लें। हर एक घंटे में एक एक घूंट पीते रहें। अगस्त्य हरीत की 5 ग्राम, दिन में दो बार गर्म पानी के साथ ले सकते हैं। प्रतिदिनदेशी गाय का बना पंचगव्य डालते रहें।
उपसम्पादक सुनील शुक्ल
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